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हनुमान चालीसा / तुलसीदास

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श्रीगुरू श्री गुरू चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि,<br>बरनऊं बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥1॥<br><br>
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार,<br>
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,<br>
जय कपिस तिहू कपीस तिहुं लोक उजागर ॥3॥<br><br>
राम दूत अतुलित बल धामा,<br>
अंजनी अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥4॥<br><br>
महावीर बिक्रम बजरंगी,<br>
हाथ बज्र और ध्वजा बिराजे,<br>
काँधे मुँज मूंज जनेऊ साजे ॥7॥<br><br>
शंकर सुवन केसरी नंदन,<br>
विद्यावान गुनि अति चातुर,<br>
राम काज करिबै करिबे को आतुर ॥9॥<br><br>
प्रभु चरित्र सुनिबै सुनिबे को रसिया,<br>राम लखन सीता मनबसिया मन बसिया ॥10॥<br><br>
सुक्ष्म सूक्ष्म रूप धरि सियहि सियहिं दिखावा,<br>
विकट रूप धरि लंक जरावा ॥11॥<br><br>
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥12॥<br><br>
लाये सजीवन लाय संजीवन लखन जियाए,<br>श्री रघुवीर रघुबीर हरषि उर लाए ॥13॥<br><br>
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई,<br>
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥14॥<br><br>
सहस बदन तुम्हरो जस गावैगावैं,<br>अस कहि श्रीपति कंठ लगावै लगावैं ॥15॥<br><br>
सनकादिक ब्रम्हादि मुनिसाब्रह्मादि मुनीसा,<br>नारद सारद सहित अहिसा अहीसा ॥16॥<br><br>
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,<br>
कवि कोविद कही सके कहि सकें कहाँ ते ॥17॥<br><br>
तुम उपकार सुग्रीवहीं सुग्रीवहिं किन्हा,<br>राम मिलाय राज पद दिन्हा दीन्हा ॥18॥<br><br>
तुम्हरो मंत्र विभीषण विभीषन माना,<br>
लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥19॥<br><br>
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,<br>
लिल्यो लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानु जानू ॥20॥<br><br>
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहिमाहीं,<br>जलधि लाँघी लाँघि गए अचरज नाहि नाहीं ॥21॥<br><br>
दुर्गम काज जगत के जेते,<br>
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥23॥<br><br>
सब सुख लहैं लहै तुम्हारी शरना,<br>
तुम रक्षक काहु को डरना ॥24॥<br><br>
आपन तेज सम्हारो आपै,<br>
तीनों लोक हाँक तै कापै कांपै ॥25॥<br><br>
भूत पिशाच निकट नहि आवै,<br>
महावीर महाबीर जब नाम सुनावै ॥26॥<br><br>
नासै रोग हरे सब पीरा,<br>
और मनोरथ जो कोई लावै,<br>
सोहि सोइ अमित जीवन फ़ल पावै ॥30॥<br><br>
चारों जुग परताप तुम्हारा,<br>
है प्रसिद्ध परसिद्ध जगत उजियारा ॥31॥<br><br>
साधु संत के तुम रखवारैरखवारे,<br>असुर निकंदन राम दुलारै दुलारे ॥32॥<br><br>
अष्ट सिद्धि नौ निधी निधि के दाता,<br>अस वर दीन दीन्ह जानकी माता ॥33॥<br><br>
राम रसायन तुम्हरे पासा,<br>
अंतकाल रघुवरपूर जाई,<br>
जहाँ जन्म हरिभक्त हरि-भक्त कहाई ॥36॥<br><br>
और देवता चित्त ना धरई,<br>
हनुमत सेहि सेइ सर्व सुख करई ॥37॥<br><br>
संकट कटै मिटै सब पीरा,<br>
जै जै जै हनुमान गुसाईँ,<br>
कृपा करहु गुरु देव की नाई नाईं ॥39॥<br><br>
जो सत बार पाठ कर कोई,<br>
छुटहि बंदी छूटइ बंदि महा सुख होई ॥40॥<br><br>
जो यह पढे पढ़ै हनुमान चालीसा,<br>होय सिद्धी सिद्ध साखी गौरिसागौरीसा,<br><br>
तुलसीदास सदा हरि चेरा,<br>
किजै कीजै नाथ ह्रदय मह महं डेरा,<br><br>
पवन तनय संकट हरन, मंगल मुरती मूरति रूप ॥<br>राम लखन सीता सहित, ह्र्दय हृदय बसहु सुर भुप भूप ॥<br><br>