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Kavita Kosh से
* [[अदृश्य थे, मगर थे बहुत से सहारे साथ / शैलेश ज़ैदी]]
* [[ये गली सीधी चली जाती है उसके द्वार तक / शैलेश ज़ैदी]]
* [[हमने समन्दरों को नहीं देखा गौर से / शैलेश ज़ैदी]]
* [[वो बूँद-बूँद टपकती गुलों की बेचैनी / शैलेश ज़ैदी]]
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