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विषकन्या / सरोज परमार
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15:08, 3 फ़रवरी 2009
कुछ हो जाने का अहसास
किसी सर्प दंश से कम नहीं होता
मैं विष कन्या बनती
जारही
जा रही
हूँ ।
यह पीली-नीली धारियों का वेश
मुझे पसन्द नहीं
द्विजेन्द्र द्विज
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