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विषकन्या / सरोज परमार

1 byte added, 15:08, 3 फ़रवरी 2009
कुछ हो जाने का अहसास
किसी सर्प दंश से कम नहीं होता
मैं विष कन्या बनती जारही जा रही हूँ ।
यह पीली-नीली धारियों का वेश
मुझे पसन्द नहीं