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नैतिक प्रश्न / अरुण कमल

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|रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह=नये इलाके में / अरुण कमल
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<Poem>
आज से पहले मैंने मित्र को कभी
 
असमंजस में नहीं देखा
 
उसने किसी को कभी कुछ पूछने की
 
मोहलत भी नहीं दी
 
क्योंकि वह जो भी कर रहा था वह
 
सत्य के पक्ष में
 
ऎतिहासिक दायित्व का विनम्र
 
निर्वाह था
 
लेकिन आज बरसात की इस शाम को
 फुट्पाथ फुटपाथ पर पहली बार उसे ठिठकते 
हिचकते देखा
 
हाथ में गर्म भुट्टा पकड़े अंगीठी पर आँखें
 
गड़ाए वह बोला--लगता है मसान के
 
कोयले पर पका है
 
खाना ठीक होगा ?
</poem>
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