भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह=नये इलाके में / अरुण कमल
}}
<Poem>
इस अंचल की एक इंच भूमि भी
ऎसी नहीं कि जहाँ होकर गुज़री न हो
यह नदी
पर क्रोध नहीं शोक है मुझे कि
बार बार जो बदलती रही रास्ता
बार बार जो पोंछती रही अपने ही छाप
जो एक पल कभी बैठी नहीं थिर
पा न सकी वो रास्त अब तक
जिसे ढूँढती फिरी सारी धरती उकटेर ।
</poem>