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Kavita Kosh से
तने में गड़ी
कंटीली बाड़ से कहता है पेड़-
कहां तक छलोगी
बहुत गहरा है मेरा सब्र
पेड़ से पूछती है बाड़
सुनी नहीं क्या तुमने राजाज्ञा
इस देश और उस देश की सीमा पर
कंटीली बाड़ लगाई जाएगी-
जहां से भी गुजरा है
राजा का अश्वमेधी घोड़ा
धरती ने पेश किया है
दो टूक कलेजा
तुम ही क्यों तने हो
निषेध बनकर?
तने में गड़ी बाड़ से
कहता है पेड़-
मेरे शरीर को छीलकर
निकल जाओ तुम
पर ऊध्र्वगामी शाखाओं जैसा
मेरा व्यापक चिंतन
मिट्टी के पोर सहलाती
मेरे ममत्व की जड़ें
बदल सकती नहीं
को राजाज्ञा
इनके विस्तार की दिशा।
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