|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=|संग्रह=चिन्दीचिंदी-चिन्दी चिंदी सुख / रेखा
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मामा-चाचा
सभी ने डोली उतार
विदा दी थी जहांजहाँ
उसी पड़ाव पर उतारना
गाड़ी वाले भइया
बीस साल बीते
लौटी हूं हूँ पीहर
तब तो सड़क एक ही थी
पूरब में देस था
कैसा अंधेर है भाई
हर पड़ाव बन गया चौराहा
भूलने लगी हूं हूँ मैं
अपने ही घर की दिशा
कोई गले लगकर नहीं पूछता
राज़ी तो हो बेटी
जवांई बाबू नहीं आए?
कंधे कँधे से कंधा कँधा भिड़ाए
भाग रही है भीड़
सभी चेहरे
या बिलों में घुस गये
वे लोग
ये नन्हें बच्चे
जिनसे पूछा है मैंने
कहीं से उगाहने
अनाथालय का चंदा
अरे बेटा!
दादी को खबर करो
गौरी जीजी आई हैं
चली आओ बेटी
आँखों में उतरा है
जब से मोतिया बिंद
खो गई है पहचान
बस आहट से पहचान लेती हूंहूँमैं भी तो लौटी हूं, हूँ अम्मा
अतीत की एक आहट-सी
आहटें ढूंढ़ ढूँढ़ रही हूंहूँवैसे तो आंखों आँखों में
नहीं बसी कभी कोई पहचान
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