वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं ।
जो थ थी जगत्पूजित वीर- भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
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स्देशस्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान,
जहाँ हुए यत्न सदा महान।
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अनेक थे वर्णे वर्ण तथापि सारे
थे एकताबद्ध जहाँ हमारे
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विचार एसे ऐसे जब चित्त आते,
विषाद पैदा करते, सताते ।