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लोग टूट जाते हैं / बशीर बद्र

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[[Category:गज़ल]]
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लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में<br>
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में<br><br>
और जाम टूटेंगेलोग टूट जाते हैं, इस शराब खाने एक घर बनाने में<br>मौसमों के आने मेंतुम तरस नहीं खाते, मौसमों के जाने बस्तियाँ जलाने में<br><br>
हर धड़कते पत्थर कोऔर जाम टूटेंगे, लोग दिल समझते हैं<br>इस शराब खाने मेंउम्र बीत जाती हैमौसमों के आने में, दिल को दिल बनाने मौसमों के जाने में<br><br>
फाख्ता हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैंउम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में फ़ाख़्ता की मज़बूरी मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती<br> कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में<br><br> दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगीकितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में
दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी<br>
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में<br><br>
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