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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शक्ति चटोपाध्‍याय |संग्रह=}} <Poem>बंद पड़े हैं दरवाजेदरवाज़े
सोया हुआ है सारा मुहल्‍ला
सिर्फ सिर्फ़ कभी-कभी सुनाई पड़ती है
रात की दस्‍तक-
'अवनि' घर में हो ?
बारह मास यहां यहाँ वर्षा होती है
बारहों मास यहां उमड़ते-घुमड़ते हैं मेघ
चरती हुई गाय की तरह
गंदी नाली में उगी घास ने
बढ़कर छेंक लिया है समूचे दरवाजे दरवाज़े को-
'अवनि' घर में हो ?
भरे हुए मन से
फैले हुए दुखों के बीच
मैं सो जाता हूं हूँ लगाकर बिस्‍तरकि अचानक सुनता हूं हूँ फिर वही दस्‍तक-
'अवनि' घर में हो ?
 '''अनुवाद - गिरीश श्रीवास्‍तव</poem>
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