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|रचनाकार=शक्ति चटोपाध्‍याय
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<Poem>
कभी तो कुछ दे नहीं पाया
क्‍या देता,मेरे पास क्‍या है देने के लिए
एक कविता लिखी है, पढोगीपढ़ोगी
तुम कौन हो
डाइन, चुड़ैल या प्रेतिनी
बूढी बूढ़ी मालिन अथवा कोई राक्षसीजब से तुम आयी आई हो तभी से
कुछ हो गया है मुझे
कौन सा जादू किया कि
सारी की सारी चीजेंचीज़ेंकुछ अलग -अलग सी लगने लगींउस अलगाव में तुम ही सामने आयीआईं
किसी तनहाई की मनमोहक बात
मेरे रक्‍तकण में भर गयीगईं
यह कौन सा दान है
जिसकी चीज चीज़ उसे लौटा देना
कभी तो कुछ दे न पाया
कविता एक लिखी है
जरा पढोगीपढ़ोगी
'''अनुवाद - वनमाली दास</poem>
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