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बसन्त / केदारनाथ सिंह
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केदारनाथ सिंह
|संग्रह=यहाँ से देखो /
केदारनाथ सिंह
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<
poem
Poem
>
और बसन्त फिर आ रहा है
शाकुन्तला
शाकुन्तल
का एक पन्ना
मेरी अलमारी से निकलकर
हवा में फरफरा रहा है
Pratishtha
KKSahayogi,
प्रशासक
,
प्रबंधक
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