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Kavita Kosh से
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<nowikipre>गद्य-वद्य कुछ लिखा करो। कविता में क्या है।
आलोचना जगेगी । आलोचक का दरजा –
मानो शेर जंगली सन्नाटे में गर्जा
लोग भुनभुनाए घर में इस से क्या होता !
रुख देख कर समीक्षा का अब मैं हूँ हामी,
कोई लिखा करे कुछ, अब जल्दी होगा नामी।</nowikipre>
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