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त्रिलोचन चलता रहा / त्रिलोचन

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मंडी हाउस पर नोएडा जाने वाली चार्टर्ड बस में त्रिलोचन<br>

त्रिलोचन को देखा<br>
पकी दाढ़ी<br>
गहरी आंखें<br>
चेहरे पर ताप<br>
हाथ में झोला<br>
चुपचाप खड़े थे बस के दरवाजे पर<br><br>

ऐ ताऊ<br>
पैसे दे<br><br>

ऐ ताऊ<br>
पीछे बढ़ जा, सीट है बैठ जा<br><br>

जैसे प्रगतिशील कवियों की ऩई लिस्ट निकली थी<br>
और उसमें त्रिलोचन का नाम नहीं था<br>
उसी तरह इस कंडक्टर की बस में <br>
उनकी सीट नहीं थी<br><br>

सफर कटता रहा<br>
त्रिलोचन चलता रहा<br>
संघर्ष के तमाम निशान<br>
अपनी बांहों में समेटे<br>
बिना बैठे<br>
त्रिलोचन चलता रहा<br>
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