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चमचे का कमाल / रमा द्विवेदी

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{{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी }}

आजकल हर जगह चमचे आ गये हैं,<br>
प्रशंसा पाने के सस्ते ढंग लोगों को भा गये हैं।<br>
इसलिए आज से चमचे खरीदने का काम करो, <br>
फिर चाहे जो कहो,वाहवाही पाने का नाम करो॥ <br> <br>
आजकल चमचों का धंधा बड़े जोरों पर चल रहा है, <br>
जहाँ देखो, जिसे देखो वही चमचा बन रहा है। <br>
यहाँ छोटे-बड़े,फोर्क,मस्का लगाने वाले चमचे बिकते हैं, <br>
आपको क्या चाहिए,यह आप सोच सकते हैं? <br> <br>
चमचों से चाहे जो ,जैसा भी काम करवाईए, <br>
सभाओं में चमचों से तालियां पिटवाइए । <br>
और क्या-क्या कहें ज़नाब नई-नई चालें फ़्री पाइए? <br>
हर्रा लगे न फिटकरी,फिर भी रंग चोखा पाइए॥ <br> <br>
यही तो प्रजातन्त्र का कमाल है , <br>
जिसके पास चमचे हैं वही खुशहाल है। <br>
काम करें चमचे और आप करें कैश, <br>
दुनिया जाए भाड़ में ,आप घर बैठे करें ऐश ॥ <br> <br>
कभी खुद चमचे बनते हैं,या किसी को बनाते हैं, <br>
येन-केन-प्रकारेण अपना नाम कमाते हैं। <br>
अगर कोई मुसीबत आ भी जाए तो, <br>
चमचों पर ड़ाल खुद बरी हो जाते हैं॥ <br> <br>
चमचों की जरूरत क्या नेता को ही होती है ? <br>
या चमचों की जरूरत सृजेता को भी होती है। <br>
संकल्प-शक्ति वाले इसके मोहताज़ नहीं होते, <br>
दूसरों के बल पर कभी सरताज़ नहीं होते ? <br> <br>
प्रधान-मंत्री से मंत्री तक सब चमचे पाल रहे हैं , <br>
यहाँ तक कि सृजेता भी इससे अछूते नहीं रहे हैं । <br>
सबको काम कम,नाम ज्यादा चाहिए, <br>
इसलिए हम सबको चमचे पालने चाहिए ॥ <br> <br>
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