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नौ सपने / भाग 2 / अमृता प्रीतम

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<poem>
फागुन की कटोरी में सात रंग घोलूँ
मुख से न बोलूँ

यह मिट्टी की देह सार्थक होती
जब कोख में कोई नींड़ बनाता है

यह कैसा जप? कैसा तप?

कि माँ को ईश्वर का दीदार
कोख में होता...

<pre>... ... ...</pre>
</poem>
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