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नौ सपने / भाग 3 / अमृता प्रीतम

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<poem>
कच्चे गर्भ की उबकाई
एक उकताहट-सी आई

मथने के लिए बैठी तो लगा मक्खन हिला,
मैंने मटकी में हाथ डाला तो
सूरज का पेड़ निकला।

यह कैसा भोग था?
कैसा संयोग था?

और चढ़ते चैत
यह कैसा सपना?

<pre>... ... ...</pre>
</poem>
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