भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता प्रीतम }} [[Category:लम्बी कविता]] {{KKPageNavigation |पीछे=नौ ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमृता प्रीतम
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
{{KKPageNavigation
|पीछे=नौ सपने / भाग 5 / अमृता प्रीतम
|आगे=नौ सपने / भाग 7 / अमृता प्रीतम
|सारणी=नौ सपने / अमृता प्रीतम
}}
<poem>
आषाढ़ का महीना –
स्वाभाविक तृप्ता की नींद खुली
ज्यों फूल खिलता है,
ज्यों दिन चढ़ता है
"यह मेरी ज़िन्दगी
किन सरोवरों का पानी
मैंने अभी यहाँ
एक हंस बैठता हुआ देखा
यह कैसा सपना?
कि जागकर भी लगता है
मेरी कोख में
उसका पंख हिल रहा है..."
<pre>... ... ...</pre>
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अमृता प्रीतम
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
{{KKPageNavigation
|पीछे=नौ सपने / भाग 5 / अमृता प्रीतम
|आगे=नौ सपने / भाग 7 / अमृता प्रीतम
|सारणी=नौ सपने / अमृता प्रीतम
}}
<poem>
आषाढ़ का महीना –
स्वाभाविक तृप्ता की नींद खुली
ज्यों फूल खिलता है,
ज्यों दिन चढ़ता है
"यह मेरी ज़िन्दगी
किन सरोवरों का पानी
मैंने अभी यहाँ
एक हंस बैठता हुआ देखा
यह कैसा सपना?
कि जागकर भी लगता है
मेरी कोख में
उसका पंख हिल रहा है..."
<pre>... ... ...</pre>
</poem>