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बौर / रघुवीर सहाय

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नीम में बौर आया

इसकी एक सहज गन्ध होती है
मन को खोल देती है गन्ध वह
जब मति मन्द होती है

प्राणों ने एक और सुख का परिचय पाया।

(1954)
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