Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री }} <poem> कितना निठुर यह उपहास ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री
}}
<poem>

कितना निठुर यह उपहास !
जो अजाने ही गया, वह था मधुर मधुमास !
कितना निठुर यह उपहास !!

अश्रु-'कण' कहकर जिसे
मैंने बहाया हाय !
सूक्ष्म रूप धरे वही था -
हृदयहारी हास !
कितना निठुर यह उपहास !

स्वप्न-सुख की आस में
सोया रहा दिन-रात,
वह गया नित लौट -
शत-शत बार आकर पास !
कितना निठुर यह उपहास !
('रूप-अरूप)
</poem>
916
edits