भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उधर के चोर / अरुण कमल

2,126 bytes added, 14:46, 15 फ़रवरी 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कमल }} [[Category:कविता]] <Poem> उधर के चोर भी अजीब हैं ल...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुण कमल
}}
[[Category:कविता]]
<Poem>
उधर के चोर भी अजीब हैं
लूट और डकैती के अजीबो-गरीब किस्से-

कहते हैं ट्रेन-डकैती सात बजते-बजते सम्पन्न हो जाती है
क्योंकि डकैतों को जल्दी सोने की आदत है
और चूँकि सारे मुसाफ़िर बिना टिकट
ग़रीब-गुरबा मज़दूर जैसे लोग ही होते हैं
इसलिए डकैत किसी से झोला किसी से अंगोछा चुनौटी
खैनी की डिबिया छीनते-झपटते
चलती गाड़ी से कूद रहड़ के खेत में ग़ुम हो जाते हैं;

और लूट की जो घटना अभी प्रकाश में आई है
उसमें बलधामी लुटेरों के एक दल ने दिनदहाड़े
एक कट्टे खेत में लगा चने का साग खोंट डाला
और लौटती में चूड़ीहार की चूड़ियाँ लूट लीं;

लेकिन इससे भी हैरतअंगेज़ है चोरी की एक घटना
जो सम्पूर्ण क्षेत्र में आज भी चर्चा का विषय है-
कहते हैं एक चोर सेंध मार घर में घुसा
इधर-उधर टो-टा किया और जब कुछ न मिला
तब चुहानी में रक्खा बासी भात और साग खा
थाल वहीं छोड़ भाग गया-
वो तो पकड़ा ही जाता यदि दबा न ली होती डकार
</poem>