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{{KKRachna
|रचनाकार=वेणु गोपाल
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}}
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ऎसा क्यों होता है-
कि कविता लिखते वक़्त
जो कवि
अपने ही शब्दों में
तीसमार खाँ
दिखता है

वही कवि
बाद में
उसी कविता के
शब्दों के बीच

मरी मक्खी-सा
पाया जाता है
</poem>