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विप्र सुदामा बसत हैं, सदा आपने धाम।
भीख माँगि भोजने भोजन करैं, हिये जपत हरि-नाम॥
ताकी घरनी पतिव्रता, गहै वेद की रीति।
छाँड़ि सबै जक तोहि लगी बक, आठहु जाम यहै झक ठानी।
जातहि दैहैं, लदाय लढ़ा भरि, भरि लैहैं लदाय यहै जिय जानी॥
पाँउ कहाँ ते अटारि अटा, जिनको विधि दीन्हि है टूटि सी छानी।