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पुराने अध्यापक / रघुवंश मणि

No change in size, 17:13, 16 फ़रवरी 2009
|रचनाकार=रघुवंश मणि
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अध्यापकों से हाथ मिलाते समय
 
अनिश्चय-सा छा जाता है
 
एकाएक हिल जाता है मन
 
सिर ऊँचा नहीं हो पाता
 
अपने बढ़ने के अहसास पर भी
 
कद में हम बढ़ जाते हैं
 
झुक जाती है उनकी कमर
 
शब्द सिखाने वाले अध्यापक
 
अध्यापक कहानी सुनाने वाले
 
मुर्गा बनाने वाले अध्यापक
 
उनके बढ़े हुए हाथ
 
जब अन्दर तक चले जाते हैं
 
सुबह की घंटियाँ बजाते
 
बरबस झुकने को मन करता है
 
जब एकाएक हाथ बढ़ा देते हैं पुराने अध्यापक
</poem>
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