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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ त्यागी |संग्रह= }} <poem> अपने इन दुखों क...
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{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ त्यागी
|संग्रह=
}}
<poem>
अपने इन दुखों को
बेकार मत जाने दो
चेहरे के चिराग से
आँसुओं के पतंगों को
यूँ ही न उड़ जाने दो,
ये सागर की लहरें हैं
इनमें ज्वार आया है
इन्हें यूँ ही न बह जाने दो।

दुख तुम्हें यतन करने से मिले हैं
बर्षों के तप और प्रतीक्शा से मिले हैं
इन्हें यूँ ही न खो जाने दो

आओ, इन दुखों से धरती बो दें
इन्हें चारों ओर घर-घर बिखरा दें
जिससे गानों की फ़सल उगे
लाल-लाल रंगीन भरे-पूरे गाने
तुम्हारे हृदय के रक्त से सने।
</poem>