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पनघट / रवीन्द्रनाथ त्यागी

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ग्राम अलका अप्सराएँ
पनघट पर नीर भरे!

सुन्दर सजीले अंग
अचल हिले खुले पंख
वस्त्र कसे, करे व्यंग्य
अधर रस बूंद भरे!

अचल हिलाता मारूत
धीरे-धीरे बजे नुपुर

उर-उर में मधुर
अंग में उमंग भरे!

मधुर हास स्नेह सने
खींच वारि कर थमे,

घूंघट तूणीर, तने-
नयनों के बाण चले!

आर्द्र-द्रुम छाया सघन
नभ नील-उज्ज्वल घन

हँसती-सी मलयज पवन
पुष्पों के पंख हिले!

उच्च नील शैल झलक
देता, आ घट में छलक
होती फिर हास किलक
काम कल चाप धर!

विहँस उड़ी विहग वधू
नीड़ चलीं ग्राम वधू
प्राणों की वीणा में
जीवन का राग भरे।
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