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|रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको
|संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको
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[[Category:रूसी भाषा]]
<Poem>
उम्र बढ़ती जा रही है माँ की मेरी
 
अब वह सवेरे देर से उठने लगी है
 
ताज़े अख़बारों की सरसराहट में भी
 
राहत उसे पहले से कम मिलने लगी है
 
हवा का हर घूँट उसे अब कड़वा लगता है
 
बर्फ़-सा सख़्त फ़र्श उसे अब चिकना लगता है
 
यहाँ तक कि कन्धे पर पड़ा हल्का शाल भी
 
उसे अब भारी लगे, ज्यों शरीर में चुभता है
 
जब माँ घूमती है बाहर, सड़क पर या गली में
 
हिमपात होता है इतना धीमा, सावधानी ही भली है
 
वर्षा जैसे चाटती है जूते उसके, किसी सनेही कुत्ते की तरह
 
हवा बहती है हौले से कि खड़ी रहे माँ कुकुरमुत्ते की तरह
 
इस महाकठिन, कष्टमय, मुसीबत भरे दौर में
 
वह सब कुछ करती रही आसानी के ठौर में
 
और मैं डरता रहा बहुत कि कहीं कोई उसे
 
पंख की तरह उड़ा न ले जाए इस रूस से
 
माँ के शेष बचे कुछ धुंधले चिन्हों के साथ
 
मैं भला तब कैसे जीवित रहूंगा, नाथ!
 
माँ है वो मेरी, आत्मा है, मेरी है प्रिया
 
उसके ही साए में मैं आज तक जिया
</poem>