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|रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको
|संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको
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[[Category:रूसी भाषा]]
<Poem>
धूप खिली थी
 
और रिमझिम वर्षा
 
छत पर ढोलक-सी बज रही थी लगातार
 
सूर्य ने फैला रखी थीं बाहें अपनी
 
वह जीवन को आलिंगन में भर
 
कर रहा था प्यार
 
नव-अरुण की
 
ऊष्मा से
 
हिम सब पिघल गया था
 
जमा हुआ
 
जीवन सारा तब
 
जल में बदल गया था
वसन्त कहार बन
 
बहंगी लेकर
 
हिलता-डुलता आया ऎसे
 
दो बाल्टियों में
 
भर लाया हो
 
दो कम्पित सूरज जैसे
</poem>