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|रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको
|संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको
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[[Category:रूसी भाषा]]
<Poem>
ऊषा
 
अभी मेपल वृक्ष के
 
हाथों में थी
 
सो रही थी यूँ जैसे कोई
 
नन्हा शिशु हो
 
और चन्द्रमा झलक रहा था
 
इतना नाज़ुक
 
मेघों के बीच गुम हो जाने का
 
इच्छुक वो
 
गर्मी की
 
उस सुबह को पक्षी
 
घंटी जैसे घनघना रहे थे
 
नए उमगे पत्तों पर धूप
 
बिछल रही थी
 
और बेड़े पर पड़े हुए थे
 
मछली के ढेर
 
शुभ्र, सुनहरे कुंदन-से
 
वे चमचमा रहे थे
</poem>