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{{KKRachna
|रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको
|संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको
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[[Category:रूसी भाषा]]
<Poem>
जैसे-जैसे दिन बीतेंगे, सम्भव है
मैं अकेला होता जाऊंगा

जैसे-जैसे वर्ष गुज़रेंगे, सम्भव है
मैं शेष नहीं हूँ, समझ जाऊंगा

जैसे-जैसे बदलेंगी शताब्दियाँ, सम्भव है
मैं लोगों की स्मृति से गुम हो जाऊंगा

पर हो न ऎसा कि दिन बीतें जैसे-जैसे
मेरे जीवन में शर्म बढ़े वैसे-वैसे

पर हो न ऎसा कि वर्ष गुजरें जैसे-जैसे
ताश का गुलाम बन जाएँ हम वैसे-वैसे

पर हो न ऎसा कि शताब्दियाँ बदलें जैसे-जैसे
हमारी कब्रों पर थूकें लोग वैसे-वैसे
</poem>