1,204 bytes added,
16:27, 20 फ़रवरी 2009 {{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
कहने को इक्कीसवीं सदी,पर<br>
बर्बरता का नंगा नाच यहां।<br>
सभ्यता यहां पर बनी है बंदी,<br>
अब तक भी नारी का उपहास यहां॥<br><br>
नारी की यातनाओं का,कभी न -<br>
खत्म होने वाला सिलसिला।<br>
रक्षक ही भक्षक बन बैठे जब,<br>
तब फिर किससे करें गिला॥<br><br>
एक है देवी, दूसरा दानव,<br>
कैसे हो सकता है मेल भला?<br>
देवी-असुर संग्राम चल रहा,<br>
किसकी होगी जीत यहां ॥<br><br>
महाभारत तो कुछ दिन चला था,<br>
सदियों का संग्राम है यह।<br>
दुष्टों के उत्पातों का,<br>
दुष्परिणाम भुगतता समाज है यह॥ <br><br>