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Kavita Kosh से
कहने को इक्कीसवीं सदी,पर<br>
बर्बरता का नंगा नाच यहां।यहाँ ।<br>सभ्यता यहां यहाँ पर बनी है बंदी,<br>अब तक भी नारी का उपहास यहां॥यहाँ॥<br><br>
नारी की यातनाओं का,कभी न -<br>
खत्म होने वाला सिलसिला।<br>
कैसे हो सकता है मेल भला?<br>
देवी-असुर संग्राम चल रहा,<br>
किसकी होगी जीत यहां यहाँ ॥<br><br>
महाभारत तो कुछ दिन चला था,<br>
सदियों का संग्राम है यह।<br>
दुष्टों के उत्पातों का,<br>
दुष्परिणाम भुगतता समाज है यह॥ <br><br>