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<poem>
आज से दर बरस पहले
न जाने कैन कौन सी अशुभ घड़ी में
एक ज्योतिषी को हमने
अपना हाथ दिखाया था
जिसने हमें बताया था-
"शने शनी रेखा मणिबंध से निकल कर
मध्यमा पर चढ़ गई है
प्रतिष्ठा, धन, बंगाला और कार है
भाई साहब!
आज का दर्शक पल्ला नहीं
खुल्लम खुल्ला मांगता है
मैं बिल्ला पर फिल्म बनाऊंगा
देश के नौजवानों को
जो बिल्ला नहीं सिखा पाया
मैं सिखाऊंगा
राजकपूर ने गलती की
फ़िल्म का नाम 'सत्यम शिवम सुन्दरम' नहीं
'नंगम धड़ंगम शरीरम' रख देता
तो