भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> विस्मृतियों के गर्भ से यादो...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
}}
<poem>
विस्मृतियों के गर्भ से
यादों की अंजुरी भर लाई हूँ ........
कुछ यादें टिकीं हैं इसमें
कुछ रिस रहीं हैं .........

ढलते सूरज की लौ सी
तपिश अभी भी बाकी है
इन यादों में ...........

तपती दुपहरी सा तुम बने रहे
बदली बन बौछारें मैं देती रहीं..........

सूरज सा तुम जलते रहे
चाँदनी बन ठंडक मैं देती रही.............

जीवन संग्राम में
तुम मुझे धकेलते रहे
झाँसी की रानी सी मैं
ढाल तुम्हारी बनती रही..............

राम बने तुम
अग्नि परीक्षा लेते रहे
भावनाओं के जंगल में
बनवास मैं काटती रही..............

देवी बना मुझे
पुरुषत्व तुम दिखाते रहे...............

सती हो, सतीत्व की रक्षा
मैं करती रही.................

स्त्री- पुरूष दोनों से
सृष्टि की संरचना है
फिर यह असमान्यता क्यों ?
</poem>


</poem>