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07:52, 27 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2
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<poem>
कनेर की डाली
डोलती है …
चैत की हवायें
आती हैं दूर दूर से लौटती
सूनी दुपहरी गिरता है
पत्ता एक
स्वर नहीं, शब्द नहीं
बस दूर सीमांत पर बहते
पहाड़ी झरने का स्वर बोलता है
सारी दोपहर
उदास एक स्मरणीय-सी
कनेर की डाली
डोलती है…
</poem>