[[Category:ग़ज़ल]]
हु्स्न—ए—चमन हु्स्न-ए-चमन से ख़ाक— ए—मनाज़िर ख़ाक- ए-मनाज़िर ही ले चलें
ज़ेह्नों में फ़स्ल—ए—गुल फ़स्ल-ए-गुल का तसव्वुर ही ले चलें
बीती रूतों की याद रहे दिल में बरक़रार
आँखों में हुस्न—ए—चश्म—ए गुल—ए—तर हुस्न-ए-चश्म-ए-गुल-ए-तर ही ले चलें
पहुँचे हुए फ़क़ीर हैं शायद न फिर मिलें
उनसे कोई दुआ—ए—मयस्सर दुआ-ए-मयस्सर ही ले चलें
सहरा—ए—ग़म सहरा-ए-ग़म की प्यास बुझाने के वास्ते
पलकों पे आँसुओं का समंदर ही ले चलें
‘साग़र’ ! अगर नविश्ता—ए—क़िस्मत नविश्ता-ए-क़िस्मत न मिल सके
सीने पे क्यों न सब्र का पत्थर ही ले चलें ?