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व्यर्थ ही रोम में बह-बह कर नीलिमा पवन करता उजली
इससे तो निर्मल आँखें जिनसे अश्रु झरें
वर्षा से धुले गगन को भी ईर्ष्यालू ईर्ष्यालु करें
काँच की कोर नीलाभ नहीं जितनी तेरी नीली पुतली
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'''इस कविता के अनुवाद में कवि रघुवीर सहाय ने भी मदद दी है'बड़ी सहायता की।