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|रचनाकार=धीरज आमेटा ’धीर’
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<poem>
ख्वाब देखा था जो मैने वो मुकम्मल होगा,
मुझ को उम्मीद है आबाद मेरा कल होगा!

धीरे धीरे ही सही नूर की आमद होगी,
दिल की आंखोँ से धुआं एक दिन ओझल होगा!

आ! इबादत में मुहब्बत को भी शामिल कर लें,
हम से मिलने को खुद अल्लाह भी बेकल होगा!

रन्ज की आग में जलता है तो जलने दो बदन,
कल मसर्रत से भिगोता हुआ बादल होगा!

इस से पहले कि ख़िज़ा खाक में दफ़्ना दे उसे,
गुल को, माला में पिरो लें तो मुकम्मल होगा!

नींद लौटा दे ये मखमल का बिछौना ले ले,
आँख लग जाएगी तो संग भी मखमल होगा!

दिल के बहलाने को इक़रार ए मुहब्बत कर ले,
दिल तो नाज़ुक है खरी बात से घायल होगा!

चैन की नींद जो आये तो गुमाँ होता है :धीर:,
हो न हो सर पे तेरे ख्वाब का आँचल होगा!

</poem>
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