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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरज आमेटा ’धीर’ }} <poem> शायर ए फ़ितरत की बातें उन...
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{{KKRachna
|रचनाकार=धीरज आमेटा ’धीर’
}}
<poem>
शायर ए फ़ितरत की बातें उनके बस की ही नहीं,
जिनको तौफ़ीक़ ए सुखन-फ़हमी खुदा ने दी नहीं!
एक दिन गुल अपने हिस्से के लुटा कर देखिये,
मुद्दतों तक उन की बूँ हाथों से जायेगी नहीं!
डूब कर गहराई में जाने का जज़्बा चाहिये,
दौलत ए गौहर कभी साहिल पे हाथ आती नहीं!
फ़ासलों में हो गयी तब्दील जब हद से बढ़ी,
रिश्तों में नज़दिकियां तो हों मगर इतनी नहीं!
है दरख्त ए याद के साये तले राहत मगर,
राहतों की अब मुझे कोई तलब होती नहीं!
"धीर"! आईना था यूं ख़ामोश मेरे सामने,
एक भी ख़ूबी इसे जैसे नज़र आयी नहीं!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरज आमेटा ’धीर’
}}
<poem>
शायर ए फ़ितरत की बातें उनके बस की ही नहीं,
जिनको तौफ़ीक़ ए सुखन-फ़हमी खुदा ने दी नहीं!
एक दिन गुल अपने हिस्से के लुटा कर देखिये,
मुद्दतों तक उन की बूँ हाथों से जायेगी नहीं!
डूब कर गहराई में जाने का जज़्बा चाहिये,
दौलत ए गौहर कभी साहिल पे हाथ आती नहीं!
फ़ासलों में हो गयी तब्दील जब हद से बढ़ी,
रिश्तों में नज़दिकियां तो हों मगर इतनी नहीं!
है दरख्त ए याद के साये तले राहत मगर,
राहतों की अब मुझे कोई तलब होती नहीं!
"धीर"! आईना था यूं ख़ामोश मेरे सामने,
एक भी ख़ूबी इसे जैसे नज़र आयी नहीं!
</poem>