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ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते
 
किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल
गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माने'
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते
</poem>
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