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वो ऐन ज़िन्दगी है. जो है इज़्तराब में
दोज़ख़ भी एक जल्वा-ए-फ़िर्दौस से हुस्न है
जो इस से बेख़बर हैं, वही हैं अज़ाब में
मैं इज़्तराब-ए-शौक़ कहूँ या जमाल-ए-दोस्त
इक बर्क़ है जो, कौंध रही है नक़ाब में
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