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मौजों का अक्स है ख़त-ए-जाम-ए-शराब में / असग़र गोण्डवी
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11:06, 8 मार्च 2009
वो ऐन ज़िन्दगी है. जो है इज़्तराब में
दोज़ख़ भी एक जल्वा-ए-फ़िर्दौस
से
हुस्न है
जो इस से बेख़बर हैं, वही हैं अज़ाब में
मैं इज़्तराब-ए-शौक़ कहूँ या जमाल-ए-दोस्त
इक बर्क़ है जो
,
कौंध रही है नक़ाब में
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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