वहाँ
अपने डैनों डै नों को उर्ध्वता में फैलाये
महापक्षी
आकाश के शुन्य शून्य में मंडराता है
मति के मन्ता का मनन करता है
विज्ञति के विज्ञाता को तलाशता है
उसे सर्वान्तर का पता-ठिकाना चाहिए
पक्षी जो अकश्देव आकाशदेव के राज्य में मंडराता है
उसे कुहासे की तनी चद्दर