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==पाँच सितारा होटल में नए मौसम के फूल==
उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में 26 नवंबर 1952 को जन्मे शायर मुनव्वर अली राना की शायरी की 16 और गद्य की 1 यानी अब तक 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । हाल ही में दिव्यांशु प्रकाशन. लखनऊ से उनकी शायरी की नई पुस्तक प्राकाशित हुई है – ‘नए मौसम के फूल’ । मुम्बई के पाँच सितारा होटल सहारा स्टार में शनिवार 21 मार्च को आयोजित एक भव्य समारोह में सहारा इंडिया परिवार के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर श्री ओ.पी.श्रीवास्तव ने इस पुस्तक का विमोचन किया । श्रीवास्तवजी ने इस अवसर पर साहित्य, सिनेमा, मीडिया और व्यवसाय जगत की जानी मानी हस्तियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जिस तरह स्लमडॉग मिलेनियर के जमाल के लिए ज़िंदगी ही सबसे बड़ी पाठशाला है, उसी तरह मुनव्वर राना की शायरी का ताना-बाना भी ज़िंदगी के रंग बिरंगे रेशों, सच्चाइयों और खट्टे-मीठे अनुभवों से बुना गया है । श्रीवास्तवजी ने उनके कुछ शेर भी कोट किए-
बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
 
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
 
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
 
मंच पर लगे बैनर पर भी ‘माँ’ इस तरह मौजूद थी-
 
इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है
 
माँ बहुत गुस्से में हो तो रो देती है
न मैं कंघी बनाता हूं , न मैं चोटी बनाता हूं
 
ग़ज़ल में आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूं
 
मुनव्वर राना ने काव्यपाठ की शुरुआत माँ से ही की-
 
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
 
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है
सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर
 
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
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