लेखक: [[रसखान]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:पद]][[Category:|रचनाकार = रसखान]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~}}{{KKVID|v=BLoGuMiK7AI}}
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सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
 
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
 नारद से सुक व्यास रहेरटें, पचिहारे तू तऊ पुनि पार न पावैं। 
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
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