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01:34, 29 मार्च 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिओम राजोरिया
|संग्रह=
}}
<Poem>
खाना खाते वक्त
गिर पड़ता है मुँह का कौर
पता नहीं कौन भूखा है ?
अपनी संस्कारजन्य पीड़ा
परेशान करती है
अभावों को रौंदता हुआ
घाटी तो चढ़ आया
पर बार-बार देखता हूँ पीछे
बार-बार होता हूँ उदास।
</poem>