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01:37, 29 मार्च 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हरिओम राजोरिया
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<Poem>
न राम रहे, न रावण
न राजा रहे, न बादशाह
मिट गये नवाबों के भी नवाब
बड़े भइया, छोटे बना, हुकुम, लम्बरदार
सब मिल गये घूरे की धूल में
पर चिन्तामणि तो चिन्तामणि हैं
अजर, अमर, अमिट हैं चिन्तामणि
इतिहास के प्रेत हैं चिन्तामणि
जैसे भूख शाश्वत है
वैसे ही शाश्वत हैं चिन्तामणि
चिन्तामणि का बेटा भी है चिन्तामणि
न हवा सुखा पाएगी उन्हें
न जल भिगो पाएगा
न कभी विभाजित होंगे
न घुल पाएँगे किसी द्रव में
कहाँ मरे हैं चिन्तामणि ?
कपड़े बदल रहे हैं चिन्तामणि।
</poem>