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<poem>
सन सत्रह सौ चौरासी
यानी खाने की चाकलेट के आविष्कार के तीस साल बाद
उसे पीते नाश्ता करते समय
पढ़ा मैने
एक अच्छे अख़बार में
एक आदमी चर्ख़ पर चढ़ा दिया गया
 
उन्होंने चढ़ा दिया उसे चर्ख़ पर
जैसे घूँधा जाचा है आटा
या किसी की वेणी
हड्डियाँ चटकी उसकी
पहले
एक-एक करके
फिर उसका चेहरा
अंततः उसका सिर
 
लोग आ कर देख सकते थे
वे लाए अपनी-अपनी प्रेयसी
या अपना पूरा घरबार
अपना प्रसिद्ध विएनी साहस
इस लोकप्रिय मनोरंजन में
 
बाहर
जहाँ से शुरू होती थी राह वधस्थल की
तैयारियाँ देखने को उत्सुक अभी से ही था मौजूद
बूढ़ों और जवानों का जमघट
जिसका ज़िक्र लुत्फ़अंदाज़ यों किया अख़बार ने
 
सज़ा के लिए जाते अपराधी को
नियमित अंतराल से दी जाती है यातना
रोता है वह ठहाके लगाते हैं लोग
सूर्य अस्त होता है
शुरू फिर यातना
 
--एक मरहम अफ़ीम का राहत देने के लिए
और फिर एक और यातना
दाग देते हैं
सूर्ख गर्म सलाखों से नंगे बदन पर
और जैसा होता है अक्सर
पीड़ित व्यक्ति की देह करती है
विदूषकों सी हरकतें
जो कि उस युग में विशिष्ट थीं
जिसे नयी अभिनय शैलियों का पता नहीं चला था
 
जाने क्यों
यहाँ तक पहुँच आगे
पढ़ नहीं पाया में
--ज़रा भी आगे--
नाश्ते पर बैठे हुए
इस अच्छे अख़बार का रविवासरीय संस्करण जाने क्यों?
आखिरकार यह अख़बार अवैध घोषित नहीं था
इसने तो सही-सही आलोचना की थी
उनकी जो बोलते हैं पशुओं की भाषा
और साथ यह भी कहा है कि हमें छोड़नी नहीं चाहिए
अपनी शताब्दी पुरानी परंपरा - हमारी सभ्याता
हाँ, यह भी इसीमें प्रकाशित हुआ है
--भले ही एक अन्य पृष्ठ पर
 
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