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{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु खरे
|संग्रह=ख़ुद अपनी आँख से पिछला बाकी / विष्णु खरे}}<poem>
यहां न प्रकाश है न अंधकार है न धूप है न छांह है न कोहराम है न सन्नाटा
अंधी घाटी का तो कोई छोर भी नहीं
भाग निकला है शिखरों की ओर
सूर्य की टोह लेने!
</poem>