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{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2
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<poem>

इस वसंत के किनारे रुको !
इसके फूलों में
इसके पानी में
इसकी हवा में
डूब जाओ थोड़ी देर को
सुनो इसके पेड़ों की आवाज़
छुओ इसकी पत्तियां
सौंप दो अपने को
एक नाद सुनायी देगा
दिखायी देंगे देवदूतों के चेहरे
तुम्हारे भीतर प्रेम
बस धीमे से एक बार
नाम लेगा किसी का
तुम अमर होगी इस ऋतु में
फूल, पानी, हवा, वृक्ष और पत्तियां
तुम्हें धन्यवाद देंगी
नदियों में तुम्हारे लिये
आशीष होगा !
</poem>
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