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आज / आलोक श्रीवास्तव-२

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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2
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आज किसी को प्रेम करने का मन हुआ
बहुत दूर छूट गये रास्तों की याद आयी आज
जीवन कुछ और और सा लगा
एक उजाला मेरी शिराओं में
एक प्रतीक्षा आंखों में
एक शब्द
हथेलियों पर
दोपहर के फूल को
खिलते देखने जैसा लगा जीवन
रात
सांकल खटखटाती हवा बन कर
रुकी रही मेरे दरवाजे़ पर
दुनिया रोज की तरह थी
रोज की तरह थी रात
धरती और तारे
फूल और बादल
झरने, समुद्र, नदी
जंगल, पगडंडियां,
गांव
सब थे और दिनों जैसे
बस आज किसी को
प्रेम करने का मन हुआ ।
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